
पुष्यभूति वंश के संस्थापक पुष्यभूति थे।
इनकी राजधानी थानेश्वर थी।
प्रभाकर वर्धन इस वंश की स्वतंत्रता का जन्मदाता था तथा प्रथम प्रभावशाली शासक था जिसने परमभट्ठारक और महाराजाधिराज जैसी सम्मानजनक उपाधि धारण की।
प्रभाकर वर्धन की पत्नी यशोमती से 2 पुत्र राज्यवर्धन और हर्षवर्धन तथा एक अन्य राज्यश्री उत्पन्न हुई।
राज्यश्री का विवाह कन्नौज की मौखरी राजा ग्रहवर्मा से हुआ।
मालवा के शासक देवगुप्त ने गृहवर्मा की हत्या कर दी और राज्यश्री को बंदी बनाकर कारागार में डाल दिया।
राज्यवर्धन ने देव गुप्त को मार डाला परंतु देव गुप्त के मित्र गौड़ नरेश शशांक ने धोखा देकर राज्यवर्धन की हत्या कर दी।
शशांक शिव धर्म का अनुयाई था इसने बोधिवृक्ष को कटवा दिया।
राज्यवर्धन की मृत्यु के बाद 606 ईस्वी में 16 वर्ष की अवस्था में हर्षवर्धन थानेश्वर की गद्दी पर बैठा।
हर्ष को शिलादित्य के नाम से भी जाना जाता था इसने परमभट्टारक नरेश की उपाधि धारण की।
हर्ष ने शशांक को पराजित करके कन्नौज पर अधिकार कर लिया तथा उसे अपनी राजधानी बनाया।
हर्षवर्धन और पुलकेशिन द्वितीय के मध्य नर्मदा नदी के तट पर युद्ध हुआ जिसमें हर्ष की पराजय हुई।
चीनी यात्री ह्वेनसांग हर्षवर्धन के शासनकाल में भारत आया।
हर्षवर्धन 641 ईस्वी में अपने दूत चीन भेजें तथा 643 ईस्वी तथा 645 ईस्वी में दो चीनी दूत उस के दरबार में आए।
हर्षवर्धन ने कश्मीर के शासक से बुध के दंत अवशेष बलपूर्वक प्राप्त किए।
हर्ष के समय में नालंदा महाविहार महायान बौद्ध धर्म की शिक्षा का प्रधान केंद्र था।
बाणभट्ट हर्ष के दरबारी कवि थे उन्होंने हर्षचरित तथा कादंबरी की रचना की।
हर्ष को भारत का अंतिम हिंदू सम्राट कहा गया है लेकिन वह ने तो कट्टर हिंदू था और न ही सारे देश का शासक।
हर्ष के अधीनस्थ शासक महाराज अथवा महासामत कहे जाते थे।
हर्ष के मंत्री परिषद के मंत्री को सचिव या आमात्य कहा जाता था।
प्रशासन की सुविधा के लिए हर्ष का साम्राज्य कई प्रांतों में विभाजित था।
प्रांत को भुक्ती कहा जाता था। प्रत्येक भूक्ती का शासक राजस्थानी अथवा राष्ट्रीय कहलाता था।
हर्षचरित में प्रांतीय शासक के लिए लोकपाल शब्द का उपयोग किया गया है।
मुक्ति का विभाजन जिलों में हुआ था जिले की संज्ञा थी विषय जिसका प्रधान विषयपति होता था।
विषय के अन्तर्गत कई पाठक होते थे।
ग्राम शासन की सबसे छोटी इकाई थी।
ग्राम शासन का प्रधान ग्रामक्षपटलिक कहा जाता था।
पुलिसकर्मियों को चाट यां भाट का कहा गया है।
हर्षचरित्र में सिंचाई के साधन के रूप में तुलायंत्र का उल्लेख मिलता है।
हर्ष के समय मथुरा सूती वस्त्रों के निर्माण के लिए प्रसिद्ध था।
